भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आहा! / दुष्यन्त
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:09, 16 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दुष्यन्त }} {{KKCatKavita}} <poem> टुकड़ा-टुकड़ा धूप सर्दी की …)
टुकड़ा-टुकड़ा धूप
सर्दी की
बूंद-बूंद खुशियां
और
आँसू-आँसू प्यास
दाना-दाना भूख
सचमुच
ज़िन्दगी कितनी ख़ूबसूरत है.
मूल राजस्थानी से अनुवाद- मदन गोपाल लढ़ा