भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दर्शन / ऋतुराज

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:00, 26 सितम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ॠतुराज }} आदमी के बनाए हुए दर्शन में दिपदिपाते ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आदमी के बनाए हुए दर्शन में

दिपदिपाते हैं सर्वशक्तिमान

उनकी साँवली बड़ी आँखों में

कुछ प्रेम, कुछ उदारता, कुछ गर्वीलापन है


भव्य वह भी कम नही है

जो इंजीनियर है

इस विराट वास्तुशिल्प का


दलित की दृष्टि में कौतुक है

दोनों पक्षों कि लिए

यानी प्रभु की सत्ता और

बुर्जुआ के उदात्त के लिए

एक अवाक् जिज्ञासा है कि

ऐसा कैसे हुआ ऐसा कैसे हुआ ! ! !