भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुखी आदमी / केदारनाथ सिंह
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:34, 26 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ सिंह |संग्रह=उत्तर कबीर और अन्य कविता…)
आज वह रोया
यह सोचते हुए कि रोना
कितना हास्यास्पद है
वह रोया
मौसम अच्छा था
धूप खिली हुई
सब ठीक-ठाक
सब दुरुस्त
बस खिड़की खोलते ही
सलाखों से दिख गया
ज़रा-सा आसमान
और वह रोया
फूटकर नहीं
जैसे जानवर रोता है माँद में
वह रोया।