Last modified on 29 नवम्बर 2009, at 20:49

औरत-1 / चंद्र रेखा ढडवाल

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:49, 29 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्र रेखा ढडवाल |संग्रह= }} {{KKKavita}} <poem> '''औरत(एक)''' क…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

साँचा:KKKavita


औरत(एक)

किसने दिया नहीं
किसने अवरोध धरे राह में
किसने छीना तुमसे
इससे पहले यह बतलाना
कितने आकाश बसाए आँखों में
कितने ‘पर’ ओढ़े कंधों पर
कितनी किश्तियाँ बाँधी पैरों में

अपने हक में इक फ़ैसला लेकर
कितना अड़ीं तुम
अपने साथ हुए अन्याय पर
कितना लड़ीं तुम

अवकाश के क्षणों में सोचना
सोचना विस्तार को लेकर
ऊँचाइयों को लेकर
निर्विरोध यात्राओं को लेकर

और सबसे ज़्यादा
उस युद्ध को लेकर
जो प्रतीक्षारत
तुम्हारी कोख में.