एक हमारी भी दुनिया है,
घिरी कँटीले तारों से जो घिरी हुई दीवारों से!
इन तारों के, दीवारों के पार चाँद-सूरज उगते हैं,
ऊपर दिन के हंस रात के मानस के मोती चुगते हैं!
हम भी दूर दूर दुनिया से उन सूने नभ-तारों-से!
हम दीवारों के भीतर हैं, मन के भीतर हैं मनुहारें,
पर पलकों की ओट नहीं होने देती काली दीवारें,
मन मारे मनुहार पड़ी हैं बँधी कँटीले तारों से!