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मेरे गान / नरेन्द्र शर्मा

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विकल मेरे गान!
ठहर पल भर, धीर धर, ओ विकल मेरे गान!
आज तू मत खोल उर के द्वार,
आज भीतर बंद है विक्षिप्त हाहाकार,