भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गोधूली है / माखनलाल चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:29, 12 दिसम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=माखनलाल चतुर्वेदी |संग्रह=समर्पण / माखनलाल चतु…)
अन्धकार की अगवानिन हँस कर प्रभात सी फूली है,
यह दासी धनश्याम काल की ले चादर बूटों वाली
उढ़ा नाथ को, यह अनाथ होने के पथ में भूली है!
गोधूली है।
टुन-टुन क्वणित, कदम्ब लोक से, ले गायें धीमे-धीमे
रज-पथ-भूषित जग-मुख कर, केसर आँखों जब झूली है।
गोधूली है।
नभ चकचौंधों से घबड़ाती, रवि से कुछ रूठी-रूठी;
नभ-नरेश को उढ़ा, स्वयं ही आत्म-घात-पथ भूली है
डाह भरी के कर में दे दी, तम की सूली है।
गोधूली है।
रचनाकाल: नागपुर-१९३४