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गाती हूँ मैं...(हज़ल) / भारतेंदु हरिश्चन्द्र

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हज़ल (हास्य ग़ज़ल)


गाती हूँ मैं औ नाच सदा काम है मेरा

ए लोगो शुतुरमुर्ग परी नाम है मेरा


फन्दे से मेरे कोई निकलने नहीं पाता

इस गुलशने आलम में बिछा दाम है मेरा


दो-चार टके ही पै कभी रात गंवा दूं

कारुं का खजाना तभी इनआम है मेरा


पहले जो मिले कोई तो जी उसका लुभाना

बस कार यही तो सहरो शाम है मेरा


शुरफा व रूज़ला एक हैं दरबार में मेरे

कुछ खास नहीं फ़ैज तो इक आम है मेरा


बन जाएँ चुगद तब तो उन्हें मूड़ ही लेना

खाली हों तो कर देना धता काम है मेरा


ज़र मज़हबो मिल्लत मेरा बन्दी हूँ मैं ज़र की

ज़र ही मेरा अल्लाह है ज़र राम है मेरा