भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जागरण / अंतराल / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
198.190.230.62 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 00:16, 29 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर }} <poem> ...)
आज जीवन में सफलता की मुझे आहट मिली है !
आज तो आराधना का
इस हृदय की साधना का
फल मिलेगा, बल मिलेगा,
आज तो पतझार में अगणित नयी कलियाँ खिली हैं !
उठ रही हैं मुक्त लहरें,
भाव रोदन के न ठहरें,
पास यह गन्तव्य आया
हार का बंदी नहीं, जीत मुझसे आ हिली है !
मिट चुकी है रात काली,
छा रही है आज लाली,
हो रहा कलरव मनोहर
जागरण-बेला यही है, प्राण ने पहचान ली है !
1947