भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
निवेदन / मधुरिमा / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:22, 30 दिसम्बर 2009 का अवतरण (निवेदन (मधुरिमा) / महेन्द्र भटनागर का नाम बदलकर निवेदन / मधुरिमा / महेन्द्र भटनागर कर दिया गया है)
सुप्त उर के तार फिर से
प्राण ! आकर झनझना दो !
नभ-अवनि में शुभ्र फैली चांदनी,
मूक है खोयी हुई-सी यामिनी ;
और कितनी तुम मनोहर कामिनी !
- आज तो बन्दी बनाकर
- क्षणिक उन्मादी बनादो !
मद भरे अरुणाभ हैं सुन्दर अधर,
नैन हिरनी से कहीं निश्छल सरल,
देह ‘विद्युत, काँच, जल-सी’ श्वेत है,
डालियों-सी बाहु मांसल तव नवल,
- आज जीवन से भरा नव
- गीत मीठा गुनगुना दो !
स्वर्ग से सुन्दर कहीं संसार है,
हर दिशा से हो रही झंकार है,
विश्व को यह प्रेम री स्वीकार है,
- चिर-प्रतीक्षित-मधु-मिलन
- त्योहार संगिनि ! अब मना लो !