भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मनुष्यों की तरह / नरेश सक्सेना

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:55, 9 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश सक्सेना |संग्रह=समुद्र पर हो रही है बारिश / नरेश स...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोई-कोई वृक्ष

बिल्कुल मनुष्यों की तरह होते हैं


वे न फल देते हैं न छाया

एक हरे सम्मोहन से खींचते हैं

और पहुँच में आते ही

दबोच कर सारा ख़ून चूस लेते हैं


उस वक़्त बिल्कुल मनुष्यों की तरह

हो जाता है सारा जंगल

एक भी वृक्ष आगे नहीं बढ़ता।