भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पुरानी यादें-3 / मनीषा पांडेय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:13, 12 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनीषा पांडेय }} पुराना घाव बनकर यादें रिसती रहती हैं द...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पुराना घाव बनकर यादें

रिसती रहती हैं दिन-रात

हलक में अटकी पड़ी रहती हैं सालों-साल

न उगली जाती हैं, न निगली