अनायास ही / कुमार सुरेश
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हम अनचाहा गर्भ नहीं थे हत्या कर नाली में बहाया नहीं गया माँ की छाती में हमारा पेट भरने के लिए दूध था खाली थे उसके हाथ हमें थामने के लिए
वह गाड़ी चूक गयी हमसे जो मिलती तो पहुचती कभी नहीं निकली ही थी ट्रेन स्टेशन पर गोली चली उस विमान पर नहीं था बम जिस पर हम सवार हुए
सड़क पर कितनी ही बार गिन्दगी और मौत के बीच दुआ सलाम हुई घर में बचे रहे खुद के बिछाए फंदों से बीमारिया चूकती रही निशाना आकाश की बिजली घर पर नहीं गिरी
जब सुनामी आई हम मरीना बीच पर नहीं थे धरती थर्राई नहीं थे हम भुज में हम स्टेटस में नहीं थे नौ ग्यारह के रोज श्रीनगर अहमदाबाद में नहीं थे जब बम फूटा
हम इस बक्त भी वहा कही नहीं है जीवन हर रहा है जहा म्रत्यु से
फिलवक्त इस जगह पर हम इतने यह और उतने वह इतना बनाया और इकठ्ठा किया क्योकि अनायास ही जहा मौजूद थे वह सही वक्त और सही जगह थी गलत वक्त गलत जगह पर कभी नहीं थे हम