Last modified on 16 अक्टूबर 2007, at 22:20

पशेमानी / कैफ़ी आज़मी

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:20, 16 अक्टूबर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैफ़ी आज़मी }} मैं ये सोच कर उस के दर से उठा था<br> के वो रो...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैं ये सोच कर उस के दर से उठा था
के वो रोक लेगी मना लेगी मुझको
कदम ऐसे अंदाज से उठ रहे थे
के वो आवाज़ देकर बुला लेगी मुझको
हवाओं मे लहराता आता था दामन
के दामन पकड़ के बैठा लेगी मुझको

मगर उस ने रोका, ना मुझको मनाया
ना अवाज़ ही दी, ना वापस बुलाया
ना दामन ही पकड़ा, ना मुझको बिठाया
मैं आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ता ही आया
यहाँ तक के उस से जुदा हो गया मैं