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इक मेरी अख काशनी / पंजाबी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

इक मेरी अख काशनी,
दूजा रात दे उन्नींद्रे ने मारेया,
शीशे ते तरेड़ पै गयी,
वाल वौंदी ने धयान जदों मारेया,
के इक मेरी अख ....

इक मेरी सस्स चंदरी,
भैड़ी रोही दे बूटे नालों काली,
दिन रात रवे घूरदी,
नाले दवे मेरे माँ-पयां नू गाली,
नी क़ेहडा उस चंदरी दा,
असाँ लचियाँ दा बाग उजाड़ेया,
के इक मेरी अख काशनी...

के इक मेरा दियोर निकड़ा,
भैडा गौरियाँ रन्ना दा शौकी,
ढुक ढुक नेह्ड़े बैठदा,
रख सामणे रंगीली चौंकी,
नी इस्से गल तों डरदी ,
असाँ तीक वी न घुण्ड नूँ उतारया,
के इक मेरी अख काशनी...

इक मेरा कंत ज़िम्वे,
रात चानड़ी च दुध डा कटोरा,
रात दे सिन्दूरी रंग दा,
ओदे नैणा च शराबी डोरा,
नी इको गल माड़ी उसदी,
लाईलग नु है माँ ने बिगाडिया।

के इक मेरी अख काशनी,
दूजा रात दे उन्नींद्रे ने मारेया,
शीशे ते तरेड पै गयी,
वाल वौंदी नु धयान जदों मारेया।