Last modified on 30 मई 2008, at 11:43

जैसे आग / नीलेश रघुवंशी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:43, 30 मई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीलेश रघुवंशी |संग्रह=घर-निकासी / नीलेश रघुवंशी }} तुम क...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुम कभी सूरज हो

कभी चांद

कभी धरती

कभी आकाश


बांधना मुश्किल है तुम्हें शब्दों में

पानी में नहीं बंधती जैसे आग।