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घर के बारे में / नीलेश रघुवंशी

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अपने घर में रहते
कभी नहीं सोचते हम
जो घर आज हमारे इतने पास है
वही एक दिन दूर हो जाएगा
अपने घर आने के लिए
गुज़रना होगा एक यात्रा से
हमें घर की बहुत याद आएगी
बस! अब जल्दी ही घर जाएँगे
और उतनी ही देर से पहुँचेंगे।

कब सोचा था ऐसा
बाज़ार जाएँगे अकेले
घर की पसन्द की चीज़ों को निहारेंगे
दूर से देखेंगे और सोचेंगे
घर में यह चीज़ होती तो कैसी होती।

अचानक आँखों में भरा-पूरा घर आ बसेगा
तेज़ हॉर्न की आवाज़
पल भर में घर से दूर कर देगी।
सारा दिन खिझते चिड़चिड़ाते करेंगे तय
अबकी घर जाएँगे तो वापस नहीं लौटेंगे।

रात में देखते हैं हम भयावह सपना
ऐसा सपना रखते हैं जिसे कोसों दूर
जिसके बारे में सोचते ख़बर पहुँचाते डरते हैं हम।

अच्छे सपने की आस में
कोशिश करते हैं दुबारा सोने की
कहाँ सोचा था हमने
हम सपनों में घर के बारे में सोचेंगे।