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अनन्त मुखी / चंद्र रेखा ढडवाल

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भर पेट खाने के बाद
लोटा भर पानी पी
बरामदे में पड़े तख़्त पर
लेटते ही
सो जाता है आदमी
सजग आँखों
बच्चों का लौतना देखती
नल की धार तले
दो थालियाँ रखती
औरत पर नहीं चढ़ती
ख़ुमारी रोटी की
अलस संतोष घेरता ही नहीं
कि उसकी भूख तो अनन्त
अनन्त मुखों से
खाकर चुकने वाली