भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पानी की नींद / एकांत श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:07, 28 अप्रैल 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: दो आदमी<br /> पार करते हैं सोन<br /> सॉंझ के झुटपुटे में<br /> तोड़कर पानी की…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दो आदमी
पार करते हैं सोन
सॉंझ के झुटपुटे में
तोड़कर पानी की नींद

इस पार जंगल
उस पार गॉंव
और बीच में सोन
पार करते हैं दो आदमी
गमछों में बॉंधकर करौंदे और जामुन
कंधों पर कुल्‍हाडियॉं
और सिरों पर लकडियॉं लिये

लकडियॉं जो जलेंगी उनके घर
और खुशी से फूलकर
कुप्‍पा हो जायेंगी रोटियां
कुप्‍पा हो जायेंगे दो घरों के मन

हरहराता है जंगल

उन्‍हें विदा देने
सोने के किनारे तक आती है
मकोई के फूलों की गंध
और वापस लौट जाती है

उनके जाने के बाद भी
देर रात तक
जागता रहता है पानी.