भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

महात्मा जी के प्रति / सुमित्रानंदन पंत

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:13, 13 अक्टूबर 2009 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

निर्वाणोन्मुख आदर्शों के अंतिम दीप शिखोदय! -
जिनकी ज्योति छटा के क्षण से प्लावित आज दिगंचल, -
गत आदर्शों का अभिभव ही मानव आत्मा की जय
अत: पराजय आज तुम्हारी जय से चिर लोकोज्वल!
मानव आत्मा के प्रतीक! आदर्शों से तुम ऊपर,
निज उद्देश्यों से महान, निज यश से विद, चिरंतन;
सिद्ध नहीं तुम लोक सिद्धि के साधक बने महत्तर,
विजित आज तुम नर वरेण्य, गण जन विजयी साधारण!
युग युग की संस्कृतियों का चुन तुम्नए सार सनातन
नव संस्कृति का शिलान्यास करना चाहा भव शुभकर
साम्राज्यों ने ठुकरा दिया युगों का वैभव पाहन -
पदाघात से मोह मुक हो गया आज जन अन्तर!
दलित देश के दुर्दम नेता, हे ध्रुव, धीर धुरन्धर,
आत्मशक्ति से दिया जाति-शव को तुमने जीवन बल;
विश्व सभ्यता का होना था नखशिख नव रूपान्तर,
राम राज्य का स्वप्न तुम्हारा हुआ न यों ही निष्फल!
विकसित व्यक्तिवाद के मूल्यों का विनाश था निश्चय,
वृद्ध विश्व सामन्त काल का था केवल जड खंडहर!
हे भारत के हृदय! तुम्हारे साथ आज नि:संशय
चूर्ण हो गया विगत सांस्कृतिक हृदय जगत का जर्जर!
गत संस्कृतियों का आदर्शों का था नियत पराभाव,
वर्ग व्यक्ति की आत्मा पर थे सौध धाम जिनके स्तिथ