भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शब्द-1 / एकांत श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:45, 1 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव |संग्रह=अन्न हैं मेरे शब्द / ए…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शब्‍द आग हैं
जिनकी आंच में
सिंक रही है धरती
जिनकी रोशनी में
गा रहे हैं हम
काटते हुए एक लम्‍बी रात

शब्‍द पत्‍थर हैं
हमारे हाथ के
शब्‍द धार हैं
हमारे औजार की

हमारे हर दुःख में हमारे साथ
शब्‍द दोस्‍त हैं
जिनसे कह सकते हैं हम
बिना किसी हिचक के
अपनी हर तकलीफ

शब्‍द रूंधें हुए कंठ में
चढ़ते हुए गीत हैं
वसंत की खुशबू से भरे
चिडियों के सपने हैं शब्‍द

शब्‍द पौधे हैं
बनेंगे एक दिन पेड़
अंतरिक्ष से आंखें मिलायेंगे
सिर
झुका हुआ
लाचार धरती का ऊंचा उठायेंगे.