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शब्द-2 / एकांत श्रीवास्तव
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ये शब्द हैं
जो पक रहे हैं
एक बच्चा अपनी मुट्ठी में
भींच रहा है पत्थर
कि शब्द पकें
और वह फेंके
एक चिडिया का कंठ
इंतजार में है
कि शब्द पकें
और वह गाये
और शब्द पक रहे हैं
पूरे इत्मीनान से
चौंक रहा है जंगल
हड़बड़ा रहे हैं पहाड़
कि शब्द पक रहे हैं
बेमौसम
इस वक्त
जब एक खरगोश भी
अपने कान
खड़े नहीं कर सकता
एक चिडिया भी गा नहीं सकती
कितनी खतरनाक बात है
कि शब्द पक रहे हैं
जो
गिर सकते हैं
कभी भी
वसंत और चिडियों की नींद में.