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माँग रहा लेकर कटोरा / जीवन शुक्ल

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माँग रहा लेकर कटोरा
भटक गई किस्मत का सावधान छोरा।

ढकी मुँदी आँखों के कजरारे द्वार
इकतारी काया के कर का प्रस्तार
टूट नहीं पाता है अम्बर का धीर
धरती पी जाती है होंठों में पीर

उड़ती कनकैया का
धारदार डोरा
माँग रहा लेकर कटोरा
दूषित समाज का गहन लगा छोरा।