भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरे जाने के बाद / रामदरश मिश्र
Kavita Kosh से
पंकज उपाध्याय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:42, 13 मई 2010 का अवतरण (ये कविता काफ़ी समय से मेरी डायरी के पन्नो मे मौजूद थी.. आज अपने ब्लोग पर डालने से पहले इसे गूगल कि)
छोड़ जाऊँगा
कुछ कविता, कुछ कहानियाँ, कुछ विचार
जिनमें होंगे
कुछ प्यार के फूल
कुछ तुम्हारे उसके दर्द की कथाएं
कुछ समय – चिंताएं
मेरे जाने के बाद ये मेरे नहीं होंगे
मै कहाँ जाऊँगा, किधर जाऊँगा
लौटकर आऊँगा कि नहीं
कुछ पता नहीं
लौटकर आया भी तो
न मै इन्हे पहचानूँगा, न ये मुझे
तुम नम्र होकर इनके पास जाओगे
इनसे बोलोगे, बतियाओगे
तो तुम्हे लगेगा, ये सब तुम्हारे ही हैं
तुम्ही मे धीरे धीरे उतर रहे हैं
और तुम्हारे अनजाने ही तुम्हे
भीतर से भर रहे हैं।
मेरा क्या….
भर्त्सना हो या जय जयकार
कोई मुझतक नहीं पहुचेगी॥