भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नववर्ष की पहरेदारी / सू शि
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:04, 14 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=गून ल्यू |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} Category:चीनी भाषा <Poem> ज…)
|
जल्द ही
गुज़र जाएगा साल
साँप की तरह घिसटता बिल की ओर
बस अब उसकी
आधी ही देह
बची रह गई है बाहर
कौन मिटा सकता है
इस आखिरी झलक को
और अगर हम बाँध भी दें उसकी पूँछ
तो भी कुछ नहीं होगा, नहीं हो पाएँगे सफल।
बच्चे जागे रहने का करते हर उपाय
हँसते-खिलखिलाते हैं हम इस रात
आँखों में समेटे
चूज़े नहीं कुकुटाते भोर की बांग
ढोलों को भी करना होगा इस घड़ी का सम्मान
जागते रहें हम
दीये का गुल गिरने तक
उठ कर देखता हूँ उत्तरी सप्तर्षि मंडल को बुझते हुए
अगला साल शायद आख़िरी हो मेरा
डरता हूँ मैं
समय को
बरबाद नहीं कर सकता।
इस रात को जियो भरपूर
जवानी को
अब भी
ख़ूब करता हूँ याद!
मूल चीनी भाषा से अनुवाद : त्रिनेत्र जोशी