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कहाँ वह करुणा करुणागार / सुमित्रानंदन पंत

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कहाँ वह करुणा, करुणागार,
विषय रस में रत मेरे प्राण!
पीठ पर लदा मोह का भार,
कहाँ वह दया, करे जो त्राण!
मुझे यदि मिला स्वर्ग का द्वार,
उमर जप तप कर या दे दान,
उपार्जन होगा वह, उपहार
न करुणा का, प्रभु का वरदान!