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गंध-परिसर / मनोज श्रीवास्तव

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गंध परिसर

यह जो गंध है समय की तितली है जो त्रिकाल मार्गों से उड़ती हुई युग-पौधों पर खिले अनगिनत शताब्दी-पुष्पों से मीठी-कड़वी घटनाओं का रस चूसती हुई इतिहास-उपवन में असीम जीवन को गुलजार करती है और पुराण-पात्रों में रस सहेजकर ज्ञानेन्द्रियाँ तुष्ट करती है.