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डविल्स थ्राट / कर्ण सिंह चौहान
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खेल रही है नदी
भंवरो में
चक्कर काट रही है नदी
खेल में दिपती
दो खंजन आंखें
भंवों के इशारे पर
खांडे की धार नापते पांव
बुला रही है नदी ।
बाहर भीतर अनहद
घुप्प अंधेरे में
छू रही है नदी ।
जो भी यहां आया
डूबा
कभी मिला नहीं ।
ऊँचे पहाड़ के बंद उदर में
गरजती हो तुम
गर्जते हैं सौ पहाड़
ग्रीस का सीना सीमा पार
पत्थरों पर खुदे हैं
तुम्हारी बलि चढ़े नाम
पर्यटक आते हैं
पढ़ने, सुनने
तुम्हारे लेख
तुम्हारे स्वर
तुम्हीं में समाने ।
वे आते हैं
चहकते
खेलते
और डूबकर जाते हैं
अकेले
अस्तित्वहीन
फिर भी बार-बार आते हैं ।
डविल्स थ्रोट : ग्रीक सीमा पर एक भयकर गुफा में उफनती नदी किंवदतियों भरी