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खेल / लीलाधर जगूड़ी

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बहुत-कुछ अपने जैसा जन्मते ही जो एक आदमी
लीलाधर जगूड़ी नहीं था--वह मैं हूँ

मेरा जन्म ही कठोर कारागार है
--जन्म ही कठोर कारागार है
--मैं जन्म से ही कठोर कारागार में हूँ

क़ैदियों को भी प्यार की ज़रूरत है ये कब से कहा जा रहा है

पहले यहाँ मेरे पिता फँसे
--जब मैं आया वे जेलर बन गए

तब से मेरे दाएँ हाथ का काम
उनके बाएँ हाथ का खेल हो गया ।