भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नैन भरि देखौ गोकुल-चंद / भारतेंदु हरिश्चंद्र

Kavita Kosh से
अजय यादव (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:08, 14 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र }} <poem> नैन भरि देखौ गोकुल-चंद…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नैन भरि देखौ गोकुल-चंद।
श्याम बरन तन खौर बिराजत, अति सुंदर नंद-नंद।
विथुरी अलकैं मुख पै झलकैं, मनु दोऊ मन के फंद।
मुकुट लटक निरखत रबि लाजत, छबि लखि होत अनंद।
संग सोहत बृषभानु-नंदिनी, प्रमुदित आनंद-कंद।
’हरीचंद’ मन लुब्ध मधुप तहँ पीवत रस मकरंद॥