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बच जाता आदमी / चंद्र रेखा ढडवाल
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बच जाता आदमी
लाज कभी मन की
कभी तन की
रिश्ता प्यार का
कभी दुनियादारी का
बचाने में
लगी रहती है औरत
और बच जाता है आदमी