Last modified on 16 दिसम्बर 2009, at 13:19

मन भर आया / चंद्र रेखा ढडवाल

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:19, 16 दिसम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चंद्र रेखा ढडवाल |संग्रह=औरत / चंद्र रेखा ढडवाल }}…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बनाए आँख सुरमेदानी
मेंहदी रचाए हाथों में
पैरों में वह भी
छिदवाए कान नाक
पहने झुमकेनाचती
गर्मी से चिपचिपाती देह पर
ढोए मन भर
बनारसी बंगलूरी साड़ी
सँवरते-बनते
पोर-पोर पिराए दर्द से
उसका भी
हँस -हँस कर रीझों से
अपने नाम लिखा जो
उसके लिए सोचा भी
तो मन भर आया