Last modified on 6 मई 2007, at 14:28

पत्रोत्कंठित जीवन का विष / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

Hemendrakumarrai (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 14:28, 6 मई 2007 का अवतरण (New page: रचनाकारः सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" Category:कविताएँ [[Category:सूर्यकांत त्र...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रचनाकारः सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

  • =*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*

पत्रोत्कंठित जीवन का विष बुझा हुआ है,
आज्ञा का प्रदीप जलता है हृदय-कुंज में,
अंधकार पथ एक रश्मि से सुझा हुआ है
दिङ् निर्णय ध्रुव से जैसे नक्षत्र-पुंज में।
लीला का संवरण-समय फूलों का जैसे
फलों फले या झरे अफल, पातों के ऊपर,
सिद्ध योगियों जैसे या साधारण मानव,
ताक रहा है भीष्म शरों की कठिन सेज पर
स्निग्ध हो चुका है निदाघ, वर्षा भी कर्षित
कल शारद कल्प की हेम लोमों आच्छादित,
शिशिर-भिद्य, बौरा बसंत आमों आमोदित,
बीत चुका है दिक् चुम्बित चतुरंग, काव्य, गति-
यतिवाला, ध्वनि, अलंकार, रस, राग बन्ध के
वाद्य छन्द के रणित गणित छुट चुके हाथ से,
क्रीड़ाएँ व्रीड़ा में परिणत। मल्ल मल्ल की-
मारें मूर्छित हुईं, निशाने चूक गये हैं
झूल चुकी है खाल ढाल की तरह तनी थी।
पुनः सवेरा, एक और फेरा हो जी का।