भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कविता में / मोहन आलोक

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:42, 17 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>कविता में ढूंढ़नी हो यदि आपको कोई गहरी चीज तो कमीज उतारो और लगा…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कविता में
ढूंढ़नी हो यदि आपको
कोई गहरी चीज

तो कमीज
उतारो और लगाओ उस में
एक डुबकी

डुबकी,
तो आपको आएगी
जब आप की गर्म-मिजाज देह
कविता के
ठण्डे पानी में जाएगी ।
पर डूबो आप
जितनी देर डूब सकते हो
इस ताल में
सांस रोक कर कपाल में,
और जाते रहो
शब्दों की श्रृंखला पकड़ कर
गहरे
गहरे
और
गहरे,
कि आपको वापिस निकलने का
ध्यान ही न रहे
और आपका मन
आप कविता में हैं
यह भी न कहे ।

अनुवाद : नीरज दइया