भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुड़िया-11 / नीरज दइया
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:59, 22 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>तुम्हारे भीतर और भीतर उतरने की चाह अब भी जिंदा है कब तक रहोगी कि…)
तुम्हारे भीतर
और भीतर
उतरने की चाह
अब भी जिंदा है
कब तक रहोगी
किनारों से लिपटी तुम
एक दिन तुम्हें
जब छोड़ कर किनारे
बीच भंवर में
आना ही होगा
अपनी जिंदगी ढूँढने।