भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कोयल गान / मुकेश मानस
Kavita Kosh से
Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:15, 23 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश मानस |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> कोयल गान एक कोयल …)
कोयल गान
एक कोयल गा रही है
कोई मधुर सुरीला गीत
मेरे घर के साथ खड़े
हरे भरे एक पेड़ पर
जिसकी शाखें
मेरे घर की बालकनी में
घुसी चली आती हैं
कोई दस्तक दिये बिना
जैसै बिन पूछे ही रमी जा रही
मेरे भीतर कोयल की आवाज़
किसी आश्चर्य से कम नहीं
मेरे घर के साथ खड़े
हरे भरे एक पेड़ पर
किसी कोयल का गाना
और लगातार गाते चले जाना
कहाँ गए सब जंगल?
कहाँ गए सब बाग-बगीचे?
कहाँ गए सब खूबसूरत फूल?
जो ये कोयल गा रही है
दिल्ली जैसे महानगर में रहने वाले
मेरे जैसे एक कवि के घर में
2004