एकाकीपन के मध्य
स्मरीतयों के खुले आकाश पर
विचरण कर रहे हैं
उदासियों के पक्षी
कहाँ कहाँ से उड़ते चले आ रहे हैं
बैठते चले जा रहे हैं
मन मुंडेर पर!
भीग गया है अंतस का कोना कोना
क्यों आ जाता है
वसंत के तुंरत बाद
पतझड़ ?
क्यों नहीं भाति उदासियों को
खुशियों की
नन्ही चमकीली बूँदें ?