भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कांच के ख्वाब / गुलज़ार
Kavita Kosh से
Abha Khetarpal (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:03, 8 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKRachna |रचनाकार=गुलज़ार |संग्रह = पुखराज / गुलज़ार }} <poem> देखो आहिस्ता च…)
देखो आहिस्ता चलो,और भी अहिस्ता ज़रा
देखना,सोच-समझकर ज़रा पावँ रखना
जोर से बज न उठे पैरों की आवाज़ कहीं
कांच के ख्वाब हैं बिखरे हुए तन्हाई में
ख्वाब टूटे न कोई,जाग न जायें देखो
जाग जायेगा कोई ख्वाब तो मर जायेगा