अर्जुन अनपढ़ आदमी, पढ्यौ न काहू ज्ञान ।
मैंने तो दुनिया पढ़ी, जन-मन लिखूँ निदान ।।1।।
ना कोऊ मानव बुरौ, ब्रासत लाख बलाय।
जो हिन्दू ईसा मियाँ, भेद अनेक दिखाय ।।2।।
बस्यौ आदमी में नहीं, ब्रासत में सैतान ।
अर्जुन सब मिल मारिये, बचै जगत इन्सान ।।3।।