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पूरा दुख और आधा चांद / परवीन शाकिर
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रचनाकार: परवीन शाकिर
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पूरा दुख और आधा चाँद
हिज्र की शब और ऐसा चाँद
इतने घने बादल के पीछे
कितना तन्हा होगा चाँद
मेरी करवट पर जाग उठे
नींद का कितना कच्चा चाँद
सहरा सहरा भटक रहा है
अपने इश्क़ में सच्चा चाँद
रात के शायद एक बजे हैं
सोता होगा मेरा चाँद