भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
त्रिवेणी 2 / गुलज़ार
Kavita Kosh से
Abha Khetarpal (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:23, 23 सितम्बर 2010 का अवतरण
सब पे आती है सब की बारीसे
मौत मुंसिफ़ है कम-ओं-बेश नहीं
ज़िन्दगी सब पे क्यूँ नहीं आती
कौन खायेगा किसका हिस्सा है
दाने-दाने पे नाम लिखा है
'सेठ सूद्चंद मूलचंद आक़ा
उफ़! ये भीगा हुआ अख़बार
पेपर वाले को कल से चेंग करो
'पांच सौ गाँव बह बह गए इस साल'