भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपनी बात / आलोक धन्वा

Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:53, 11 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = आलोक धन्वा }} {{KKCatKavita}} <poem> कितने दिनों से रात आ रही ह…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कितने दिनों से रात आ रही है
जा रही है पृथ्‍वी पर
फिर भी इसे देखना
इसमें होना एक अनोखा काम लगता है

मतलब कि मैं
अपनी बात कर रहा हूँ।


(1996)