भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किस तरह मिलूँ तुम्हें / पवन करण

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:58, 28 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पवन करण }} किस तरह मिलूँ तुम्हें क्यों न खाली क्लास रू...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


किस तरह मिलूँ तुम्हें


क्यों न खाली क्लास रूम में

किसी बेंच के नीचे

और पेंसिल की तरह पड़ा

तुम चुपचाप उठाकर

रख लो मुझे बस्ते में


क्यों न किसी मेले में

और तुम्हारी पसन्द के रंग में

रिबन की शक़्ल में दूँ दिखाई

और तुम छुपाती हुई अपनी ख़ुशी

खरीद लो मुझे


या कि कुछ इस तरह मिलूँ

जैसे बीच राह में टूटी

तुम्हारी चप्पल के लिए

बहुत ज़रूरी पिन