भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उसके दिन / पवन करण

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:31, 28 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पवन करण }} उड़ने को बेताब उसके दिन मेरे हाथों में फड़फ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


उड़ने को बेताब उसके दिन

मेरे हाथों में

फड़फड़ा रहे हैं


मेरे कानों में रेंग रहे हैं

उसके शब्द

उसकी इच्छाएँ

मेरी जेबों में भरी पड़ी हैं


उसकी लहलहाती देह

जिसे बुरी तरह रौंदकर

मैं अभी-अभी लौटा हूँ

मेरी टापों के नीचे

पकी फसल जैसी है


वह जो एक दिन मेरे

पीछे-पीछे आई थी चलकर

मेरे विस्तार में

ख़ुद को खोज रही है