भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छात री बात / विनोद स्वामी
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:37, 31 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>छात रै मोरै मांखर सूरज देख्यो म्हारै कानी बोल्यो- बाळ देस्यूं …)
छात रै मोरै मांखर
सूरज देख्यो म्हारै कानी
बोल्यो-
बाळ देस्यूं
छात मुळकी म्हारै कानी
अर बोली-
सूत्या रैवो, सूत्या रैवो
ओ तो इयां ई करै!