भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

महामहिम / श्रीकांत वर्मा

Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:02, 18 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीकांत वर्मा }}<poem>महामहिम! चोर दरवाजे से निकल …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

महामहिम!
चोर दरवाजे से निकल चलिये!
बाहर
हत्यारे हैं!
बहुक्म आप
खोल दिये मैनें
जेल के दरवाजे,
तोड़ दिया था
करोड़ वर्षों का सन्नाटा
महामहिम!
ड़रिये! निकल चलिये!
किसी की आँखों में
हया नहीं
ईश्वर का भय नहीं
कोई नहीं कहेगा
"धन्यवाद"!
सबके हाँथों में
कानून की किताब है
हाथ हिला पूछते हैं
किसने लिखी थी
यह कानून की किताब?