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चौमासो !/ कन्हैया लाल सेठिया

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ल्यायो हांक‘र असाढ़
आभै री अगूणी बाखळ में
रिड़कती दूजती
काळी भंवर भैंस्यां
दुवै धरती रै गोणियैं में
धारोधार दूध
फिरै पंपोळती
रोड़ां नै
धिराणी बीज
नहीं लागज्या निजर
ईं खातर
घाल दियो
रामधणख रो गळावंडों !