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पश्चाताप / राजेन्द्र राजन
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महान होने के लिये
जितनी ज़्यादा सीढ़ियां मैनें चढीं
उतनी ही ज़्यादा क्रूरताएं मैंने कीं
ज्ञानी होने के लिए
जितनी ज़्यादा पोथियां मैंने पढ़ीं
उतनी ही ज़्यादा मूर्खताएं मैंने कीं
बहादुर होने के लिए
जितनी ज़्यादा लड़ाइयां मैंने लड़ीं
उतनी ही ज़्यादा कायरताएं मैंने कीं
ओह, यह मैंने क्या किया
मुझे तो सीधे रास्ते जाना था