भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एहसास / शशि सहगल
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:15, 16 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शशि सहगल |अनुवादक= |संग्रह=कविता ल...' के साथ नया पन्ना बनाया)
हम
कितना समझ पाए हैं एक-दूसरे को,
आज भी
यह प्रश्न मेरे सामने है।
वर्षों पहले कितना सहज था
यह विश्वास कर लेना
कि शेष बाकी कुछ भी नहीं रहा जानना
आज हम
वर्षों बाद
समय के इस मोड़ पर
बहुत सतर्क हो गए हैं
गलती से घबराकर
कुछ गलत ही कर बैठते हैं
तक हम
एक-दूसरे से नज़रें बचा
ठहाके लगाते हैं दोस्तों के बीच
स्वांग भरते हैं खुश होने का
भीड़ में
हम-और अधिक निकट आ जाते हैं।