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आरक्षण / बुद्धिनाथ मिश्र
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वन-छाया हुई आरक्षित
सभी जलस्रोत भी हो गए आरक्षित
है अरक्षित सिर्फ कोमल प्राण
कस्तूरी मृगों का ।
साल-सालों से बँधा जल
टूटकर ऐसा बहा है --
कण्ठ तक पानी गया भर
तपोवन के आश्रमों में ।
हाथ में कीचड़-सने कुश
ले खड़े हैं ब्रह्मचारी
लग गए कीड़े विषैले
जाति के कल्पद्रुमों में ।
कुम्भ के घनपुष्प आरक्षित
सभी आसन सभा के हुए आरक्षित
है अरक्षित सिर्फ कलरव
ज्योति-आराधक खगों का।
है व्यवस्था-सूर्य के रथ में
जुतें बैसाखनंदन
हयवदन के मुण्ड से हो
अर्चना गणदेवता की ।
है व्यवस्था-मानसर पर
मोर का अधिकार होगा
हंस के हिस्से पड़ेंगी
झाड़ियाँ बस बेहया की ।
पवन शीतल हुआ आरक्षित
सभी मधुमास भी हो गए आरक्षित
है अरक्षित आदिकवि का छंद
करुणामय दृगों का।